हिंदी कहानियां - भाग 20
| अति का भला |
| अति का भला | मेरे एक मित्र है वो बेचारे अपने बोलने से परेशान हैं कई बार वो कुछ ऐसा बोल जाते है जो सामने वाले को बुरा लग जाता है । कुछ दिनों से वे चुप रह रहे थे पर अचानक कल उन्होंने अपना मुंख खोल दिया और सामने वाले से लडाई होते-होते बची कारण ये था की काफी दिनों से चुप रहने के कारण उनके पास बहुत सारी बातें इकट्ठी हो गई थी जो कल उन्होंने एक बार में ही बाहर निकल दी और सामने वाला इस बात के लिए तैयार नही था बाद में मैंने उनसे कहा की मालिक "अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप । अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप" वो बोले कह तो आप सही रहे हो "लेकिन क्या करे बोलते समय मैं भूल जाता हूँ की मेरी बात सामने वाले को बुरी लग जायेगी ।" अक्सर ऐसा होता है की हम बोलते समय ये भूल जाते है की सामने वाला इस बात से नाराज़ हो सकता है, चाहे वो बात सच ही क्यों न हो। इससे बचने का एक ही उपाय है की हम थोड़ा सा कम बोले और बोलने से पहले एक बार सोच ले । चाणक्य ने भी कहा है "अति छबि ते सिय हरण भौ, नशि रावण अति गर्व । अतिहि दान ते बलि बँधे, अति तजिये थल सर्व ॥" अर्थात "अतिशय रूपवती होने के कारण सीता हरी गई । अतिशय गर्व से रावण का नाश हुआ । अतिशय दानी होने के कारण वलि को बँधना पडा । इसलिये लोगों को चाहिये कि किसी बात में 'अति' न करें ॥"